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अपना मृदु गोपाल
देखा बेड़ी पहने मैंने अपना मृदु गोपाल,अपना मृदु गोपाल, सलौना वह मन मोहन लाल।
बालकृष्ण शर्मा नवीन
सुनहरी सुबह, नीली रात
कहाँ साँध होती है रिश्तों में जोतुम चढ़ जाती हो बाएँ पहाड़ की चोटी पर